Wednesday, 25 February 2015

जीएसटी

आखिर क्या है जीएसटी? 
                                 वस्तु एवं सेवा कर यानि जीएसटी वास्तव में केंद्र व राज्य सरकार द्वारा आरोपित किये जाने वाले समस्त अप्रत्यक्ष करों  जैसे- वैट, सर्विस टैक्स, एक्साइज ड्यूटी, लक्जरी टैक्स आदि का सम्मिलित एकल स्वरूप है अर्थात उपरोक्त सभी करों के अलग-अलग भुगतान के स्थान पर सिर्फ एक कर का भुगतान करना होगा जो जीएसटी के नाम से जाना जाएगा॥

जीएसटी लागू करने का क्या है उद्देश्य? 

                                                      जीएसटी लागू करने का यही उद्देश्य है कि देश के समस्त राज्यों में वस्तुओं एवं सेवाओं की असमान कर व्यवस्था के स्थान पर समान कर व्यवस्था का निर्धारण करना जिससे कि पूरे देश में वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य एक किया जा सके तथा बहुल कर प्रणाली के स्थान पर एकल कर प्रणाली को स्थापित किया जा सके ॥
किस सिद्धांत पर लागू होगा जीएसटी? 


विभिन्न करों का जीएसटी के अन्तर्गत एकीकरण निम्न सिद्धांत पर होगा -

1. जिन वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन या क्रियान्वन तो देश के एक कोने में होता है लेकिन उनका उपभोग देश के दूसरे कोने में होता है ऐसी समस्त वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन से लेकर आपूर्ति तक में जितने भी टैक्स लगते हैं उन सभी के स्थान पर एकमात्र जीएसटी को लागू करने का प्रावधान है॥

2.  ऐसे सभी टैक्स जो वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति से संबंधित नहीं है वे सभी जीएसटी से बाहर होंगे॥

जीएसटी को दो स्तर पर लागू किया जाएगा -

   
1. राज्य स्तरीय जीएसटी- इसके अंतर्गत राज्य स्तरीय करों जैसे- वैट, सेल्स टैक्स, लक्जरी टैक्स आदि को एकीकृत किया जाएगा॥   
2. केंद्र स्तरीय जीएसटी- इसके अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा लगाए जाने वाले करों जैसे- सेन्ट्रल एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स, अतिरिक्त कस्टम ड्यूटी आदि को एकीकृत किया जाएगा॥

कौन से उत्पादों पर जीएसटी लागू होगा?                                              

                                                       
तम्बाकू उत्पादों पर लगने वाले सभी टैक्सों के स्थान जीएसटी को लागू किया जाएगा लेकिन सरकार जीएसटी लागू होने के बाद भी अगर चाहे तो इनपर अतिरिक्त एक्साइज ड्यूटी लगा सकेगी॥

कौन से उत्पादों पर जीएसटी लागू नहीं होगा? 
                                                           
अभी पेश किए गए विधेयक में फिलहाल पेट्रोलियम एवं एल्कोहल उत्पादों को जीएसटी से बाहर रखा गया है इनपर टैक्स निर्धारण पूर्ववत ही होगा॥

~ इतिश्री ~



                                          
                                                    
                                    

Tuesday, 24 February 2015

भूमि अधिग्रहण कानून

भूमि अधिग्रहण कानून की जन्मपत्री खंगालने पर मालूम हुआ कि इसका जन्म 1839 में तब हुआ जब सम्पूर्ण भारत में राजनीतिक और प्रशासनिक रूप में अंग्रेजों का एकाधिकार था लेकिन तब इस कानून को कुछ कारणों से लागू न किया जा सका जो आगे चलकर 1852 में एक ट्रेलर के रूप में बम्बई प्रेसीडेंसी में लांच हुआ. उस समय बम्बई प्रेसीडेंसी में महाराष्ट्र,गुजरात,राजस्थान,गोवा राज्यों के साथ-साथ मध्यप्रदेश का वह हिस्सा भी आता था जो नागपुर से जुड़ा था.उसके बाद ही कुछ वर्षों बाद 1857 की पहली क्रांति हो गई जिसकी वजह से पूरे देश में इसे लागू करने में कुछ विलंब हो गया और जो आगे चलकर एक संशोधन के बाद 1894 में आधिकारिक तौर पर समूचे देश में लागू हो गया. इस संशोधन के माध्यम से यह बताया गया कि सरकार के द्वारा अधिग्रहित की हुई किसी भूमि के संदर्भ में हिन्दुस्तान की कोई भी अदालत संज्ञान नहीं ले सकेगी और कोई भी व्यक्ति सरकार के फैसले के खिलाफ कहीं भी शिकायत नहीं कर सकेगा.अंग्रेजों द्वारा बनाए गए ऐसे नियमों का साफ मतलब था कि इस विषय में उनकी खूब मनमानी चलेगी वे जहां चाहेंगे जिसकी चाहेंगे उसकी जमीन हडपेंगे जहां भी मन होगा वहां अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान स्थापित करेंगे और देश के खनिज संसाधनों की जमकर लूट मचाएंगे और उन्होंने ऐसा किया भी.आजादी के पूर्व के सबसे दमनकारी कानूनों में से एक था यह अंग्रेजों का बनाया हुआ भूमि अधिग्रहण कानून जिसमें न जाने कितने लोग बेघर हो गए और हमेशा के लिए उनके गुलाम बन गए.इस कानून के कारण हुए अत्याचार का एक उदाहरण है मालचा गांव, बहुत कम लोग इस गांव के बारे में जानते हैं यह सोनीपत के पास स्थित एक गांव था जिसपर अंग्रेजों की बुरी नजर 1911 के पास पड़ी और उन्होंने इसके अधिग्रहण का फरमान जारी कर दिया लेकिन गांव के किसानों ने जमीन देने से मना कर दिया क्योंकि उनकी रोजी रोटी का एकमात्र स्रोत उनके खेत ही थे और इसको लेकर उनके और किसानों के बीच जमकर खूनी संघर्ष हुआ जिसमें करीब 33 किसान मारे गए और उनकी जमीन अंग्रेजों द्वारा हड़प ली गई और उसी जमीन पर आगे चलकर भारत का राष्ट्रपति भवन और संसद भवन बनाया गया. और मित्रों विडंबना देखिए कि उसी संसद में बैठने वाले हमारे नेता उन किसानों की शहादत को भूल चुके हैं, कानून बनाते समय उन्हें किसानों का तनिक भी ख्याल नहीं आता.ऐसे ही अंग्रेजों के दमन के सैकड़ों उदाहरण हैं जिसमें उन्होंने इस कानून का सहारा लिया और विडंबना देखिए कि आजादी के बाद जिन कानूनों को खत्म कर देना चाहिए था उन्हीं कानूनों को देश आज भी ढो रहा है और अपनी बदहाली पर खुद ही तरस खा रहा है॥अंग्रेजों के बनाए इस भूमि अधिग्रहण कानून का दुरुपयोग आजाद भारत में भी जमकर हुआ है इसके भी अनगिनत उदाहरण मौजूद हैं चाहे वह गुजरात के "सतसैदा वेट" द्वीप का हो जिसका सौदा तत्कालीन चिमनभाई की सरकार ने दस पैसे प्रति स्क्वायर मीटर की दर से अमेरिका की "कारगिल" कम्पनी से कर लिया था जिसमें बाद में खुलासा हुआ कि इस सौदे के लिए मुख्यमंत्री को मोटी रकम अदा की गई थी. ऐसे ही न जाने कितने उदाहरण हैं जिसमें नेता या अफसर घूस खाकर जमीन का सौदा कौड़ियों के भाव कर देते हैं और जनता बस मूकदर्शक बनके देखती रहती है॥आजादी के बाद पहली बार 2013 में तत्कालीन यूपीए सरकार भूमि अधिग्रहण कानून लेकर आयी जिसमें किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए कहा गया कि यदि किसी निजी परियोजना के अंतर्गत किसी भूमि का अधिग्रहण होता है तो उस जमीन से संबंधित 80% लोगों की सहमति आवश्यक होगी और यदि किसी सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजना के लिए भूमि का अधिग्रहण करना होगा तब उस भूमि से संबंधित 70% लोगों की सहमति आवश्यक होगी और साथ ही शुरू होने वाली परियोजना का सामाजिक प्रभाव क्या होगा इसका सर्वे भी कराया जाएगा, पुराने कानून में प्रावधान था कि यदि अधिग्रहित की हुई भूमि पर 5 साल तक कोई भी काम शुरू नहीं होता है तो उसका अधिग्रहण निरस्त किया जाएगा॥ये उस कानून के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु थे जिनसे किसान भी सहमत थे लेकिन 2014 में जब नई सरकार आई तो उसने इस पूरे प्रारूप को बदल दिया और उपरोक्त सभी शर्तों को मानने से मना कर दिया.नये कानून के अनुसार लोगों की सहमति नहीं सरकार का निर्णय ही सर्वमान्य होगा सरकार के आदेश के विरुद्ध बिना सरकार की अनुमति के अधिग्रहण के खिलाफ न्यायालय नहीं जाया जा सकेगा किसी परियोजना को शुरू करने के पहले कोई सर्वे नहीं कराया जाएगा चाहे लोग भोपाल जैसी गैस त्रासदी का शिकार ही क्यों न हो जाएं.
अब आप ही फैसला कर लीजिए कि आज के और 120 साल पहले अंग्रेजों के बनाए हुए भूमि अधिग्रहण कानून में क्या अंतर है॥

Friday, 13 February 2015

शिकायत

कल दिन भर की व्यस्तताओं के बाद जब शाम को अपने कमरे में बैठा तो सोचा कि थकान को दूर करने के लिए कुछ देर टीवी का सहारा ले लूँ.  इसलिए टीवी चला के बैठ गया और अपनी आदत के अनुसार अलग-अलग न्यूज चैनलों की खाक छानने लगा क्योंकि बाबा रणछोड़ दास ने कहा है-"कि जहां भी ज्ञान बंट रहा हो लेते चलो". लेकिन आज इसका कोई फायदा न था क्योंकि हर न्यूज चैनल अभी दिल्ली की दीवानगी में ही व्यस्त था ऐसा पता चल रहा था कि देश-दुनिया में अभी सबकुछ ठीकठाक चल रहा है इससे बड़ी घटना अभी कहीं नहीं घटी है इसीलिए हर न्यूज चैनल अपने हिसाब से केजरीवाल की सुनामी और प्रेम-कहानी में टीआरपी बढ़ाने में व्यस्त था.
वैसे ये कोई नई बात नहीं है समय समय पर ये सब चीजें नये नये रूप में होती रहती हैं, भारत एक उदारवादी देश है इसका अगर कोई साकार रूप प्रस्तुत करता है तो वह वाकई में हमारी मीडिया है जो समय समय पर बिना भेदभाव किये हुए कभी हमें शोषित पीड़ित जनता के दुख दर्द से रूबरू कराती है तो कभी हमें बन्टी चोर की वीरगाथाएं सुनाती है तो कभी डाॅन के ऐशोआराम से हमें दो-चार कराती है.
हमारी मीडिया की सक्रियता तो इतनी ज्यादा है कि हमने मुंबई में हुए हमलों का लगातार 60 घन्टों तक सजीव प्रसारण किया और बिना भेदभाव के पूरी दुनिया के साथ-साथ उन आतंकवादियो को भी बाहर चल रही फौजी गतिविधि को दिखाया जिन्होंने उस पर हमला किया था और अन्दर होटल में छिपे बैठे थे ताकि उन्हें ये शिकायत न रहे कि अमुक न्यूज चैनल ये तो कहता है कि "आपको रखे आगे" पर समय आने पर इसने पीछे कर दिया. आखिर भारतीय लोकतंत्र का ये चौथा स्तंभ किसी को शिकायत का मौका कैसे दे सकता है और अगर आपको इसकी जिम्मेदारी और नैतिकता से कोई शिकायत है तो आपके लिए आसान विकल्प यही होगा कि एक चैनल बदलकर दूसरे पर चले जाइए क्योंकि इसमें खुद की शिकायतों को सुन पाने की सहनशीलता बिल्कुल भी नहीं है तभी तो जिन केजरीवाल को ये मीडिया आज अपने सर-ऑखों पर बैठाये हुए है उन्हीं केजरीवाल ने जब इसकी नैतिकता पर प्रश्न उठाए तो एकाएक उन्हें भी हाइप से दूर कर दिया और आज जब वह फिर से टीआरपी मेकर बनके उभरे हैं तो उन्हें फिर से गले लगा लिया॥
आखिर भारतीय मीडिया को कब समझ में आएगा कि शिकायतों पर अगर ध्यान दिया जाये तो वे सुधार की तरफ ले जाती हैं और सुधार श्रेष्ठता की तरफ॥
~इतिश्री~

मन की बात

जनसंचार के विभिन्न माध्यमों के बीच सोशल नेटवर्किंग साइट्स की बढ़ती धमक को देखते हुए मैंने भी ब्लॉग को अपनी बातों को लोगों तक पहुंचाने के लिए एक माध्यम के रूप में चुना है जिसमें औरों की तरह मैं भी अपने ज्ञान की अविरल गंगा बिना किसी अवरोध के बहा सकूँ और अपनी बात को व्यापक स्तर पर रख सकूं.
मेरा यही उद्देश्य होगा कि ऊलजलूल की बातों से दूर रहकर हमेशा तथ्यपरक बातों को अपने लेखों के माध्यम से आपके सामने रख सकूं और अपने ब्लॉग को एक श्रेष्ठ स्वरूप दे सकूं॥
~इतिश्री~