Tuesday, 23 May 2017

भक्तवादी राजनीति पर डॉ अंबेडकर का कथन

अंबेडकर ने एक बार करिश्माई सत्ता के सामने बिना सोचे-समझे अपने आपको समर्पित कर देने से संबंधित अपनी टिप्पणी में अंग्रेजी दार्शनिक जाॅन स्टुअर्ट मिल को याद करते हुए उनकी एक बात दोहराई जो ये थी कि -

"किसी महान व्यक्ति के चरणों में भी अपनी स्वाधीनता का समर्पण नहीं करना या फिर किसी ऐसे महान व्यक्ति को सर्वसत्ताधिकारी नहीं बनाना जो तुम्हारी संस्थाओं को ही भ्रष्ट कर दे ।"
इस कथन का भारत के संबंध में आशय यह था कि -

"भारत में भक्ति या समर्पण की राह या वीरपूजा राजनीति में ऐसी भूमिका निभाती है जैसी दुनिया के किसी भी देश में नहीं निभाती। किसी धर्म में भक्ति की भूमिका आत्मा की मुक्ति के लिए हो सकती है लेकिन राजनीति में भक्ति या वीरपूजा पतन और तानाशाही की राह की ओर ले जाती है॥"

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