आपको जानकर आश्चर्य होगा कि आज जिस आतंकवाद को फ्रांस बार-बार और लगातार झेल रहा है दरअसल उस आतंकवाद शब्द को पहचान ही फ्रांस से मिली है आज आतंकवाद के लिए जिस अंग्रेजी शब्द Terrorism का उपयोग हम करते हैं उसकी उत्पत्ति और कहीं नहीं बल्कि फ्रांस में ही हुई है.
फ्रांसीसी क्रांति के बड़े प्रभावी नेता Maximilien Robbespiere ही वह शख्स थे जिन्होंने सबसे पहले आधुनिक आतंकवाद को परिभाषित किया Robbespiereने Terrorism को परिभाषित करते हुए कहा था - "आतंक दरअसल त्वरित व लचीले न्याय का ही दूसरा नाम है"॥
और उन्हीं Maximilien Robbespiere के नेतृत्व में 1793-94 के दौरान फ्रांस में एक युग की शुरुआत हुई थी जो इतिहास में Reign of terror ( आतंक का युग) के नाम से दर्ज है हालांकि उसकी शुरुआत इसलिए की गई थी कि फ्रांस की जनता को दमनकारी शासकों से मुक्ति दिलाई जा सके लेकिन आज सवा दो सौ साल बाद विडंबना देखिए कि फ्रांस के लिए उस एक शब्द के मायने कितने बदल चुके हैं....
Tuesday, 23 May 2017
"Terrorism" की जन्मभूमि....फ्रांस
अरुण कमल- इस नए बसते इलाके में
इस नए बसते इलाके में
जहाँ रोज़ बन रहे हैं नये-नये मकान
मैं अक्सर रास्ता भूल जाता हूँ
धोखा दे जाते हैं पुराने निशान
खोजता हूँ ताकता पीपल का पेड़
खोजता हूँ ढहा हुआ घर
और ज़मीन का खाली टुकड़ा जहाँ से बाएँ
मुड़ना था मुझे
फिर दो मकान बाद बिना रंग वाले लोहे के फाटक का
घर था इकमंज़िला
और मैं हर बार एक घर पीछे
चल देता हूँ
या दो घर आगे ठकमकाता
यहाँ रोज़ कुछ बन रहा है
रोज़ कुछ घट रहा है
यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं
एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
जैसे वसन्त का गया पतझड़ को लौटा हूँ
जैसे बैशाख का गया भादों को लौटा हूँ
अब यही उपाय कि हर दरवाज़ा खटखटाओ
और पूछो
क्या यही है वो घर?
समय बहुत कम है तुम्हारे पास
आ चला पानी ढहा आ रहा अकास
शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देख कर
भक्तवादी राजनीति पर डॉ अंबेडकर का कथन
अंबेडकर ने एक बार करिश्माई सत्ता के सामने बिना सोचे-समझे अपने आपको समर्पित कर देने से संबंधित अपनी टिप्पणी में अंग्रेजी दार्शनिक जाॅन स्टुअर्ट मिल को याद करते हुए उनकी एक बात दोहराई जो ये थी कि -
"किसी महान व्यक्ति के चरणों में भी अपनी स्वाधीनता का समर्पण नहीं करना या फिर किसी ऐसे महान व्यक्ति को सर्वसत्ताधिकारी नहीं बनाना जो तुम्हारी संस्थाओं को ही भ्रष्ट कर दे ।"
इस कथन का भारत के संबंध में आशय यह था कि -
"भारत में भक्ति या समर्पण की राह या वीरपूजा राजनीति में ऐसी भूमिका निभाती है जैसी दुनिया के किसी भी देश में नहीं निभाती। किसी धर्म में भक्ति की भूमिका आत्मा की मुक्ति के लिए हो सकती है लेकिन राजनीति में भक्ति या वीरपूजा पतन और तानाशाही की राह की ओर ले जाती है॥"