तेजी से बदलते इस दौर में बहुत सी ऐसी चीजें हैं जो समय के साथ-साथ पीछे छूटती चली जा रही हैं और इस बात को कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि हो सकता है ये सब चीजें आने वाले कुछ वर्षों में दैनिक चलन से दूर हो जायें और बहुत सी चीजें तो दूर हो भी गई हैं•ऐसी ही वस्तुओं में शामिल हैं चाॅक,स्लेट,फाउंटेन पेन जैसी वो चीजें जो कभी हमारे बचपन का अहम हिस्सा हुआ करती थीं लेकिन अब ये सारी चीजें तेजी से चलन से बाहर होती जा रही हैं क्योंकि आधुनिक बाजार में अब इनके दूसरे विकल्प उपलब्ध हैं•विकल्प के रूप में जहां एक ओर चाॅक की जगह मार्कर ने ले ली है तो वहीं दूसरी ओर स्लेट की जगह मैजिक बोर्ड और फाउंटेन पेन की जगह बाल प्वाइंट पेन जैसी चीजों ने ले ली है•आज अगर हम बात की शुरुआत चाॅक से करें और चाॅक के माध्यम से अपने बचपन के दिनों में झांकने की कोशिश करें तो हम पाते हैं कि किन अलग-अलग तरहों से वो चाॅक की स्टिक हमें लुभाती थीं•कभी मुंह में लगाकर सिगरेट सा अंदाज बयां करने में तो कभी खाली क्लास में ब्लैक बोर्ड पर मास्टर साहब की नकल उतारने में॥
भला कैसे भूल सकता हूं मैं अपने स्कूल की चाॅक की उस एकमात्र ब्रांड "प्रेम चाॅक" को जिसके डिब्बे से हम लोग रोज एक-दो चाॅक उडाते थे और उसके बाद उसका बेहतर उपयोग घर के दरवाजों और दीवारों पर किया करते थे•वैसे स्कूलों और कॉलेजों में चाॅक का व्यापक प्रयोग शिक्षकों का चरित्र चित्रण करने उनकी गुप्त जीवनी लिखने के साथ-साथ उन्हें एकान्त दीवारों पर अलग अलग उपनामों से अलंकृत करने जैसे कार्यों के लिए भी किया जाता रहा है॥
वो चाॅक ही थी जिससे मैंने स्वर व्यंजन को लिखना सीखा अंकों को पहचानना सीखा, ये उन रंग बिरंगी चाॅकों का ही कमाल था जिसने जीव विज्ञान की क्लास को भी इतना मजेदार बना दिया था॥
चाॅक का भी क्या फलसफा है हमारी इच्छा के अनुसार कभी शब्दों में तो कभी चित्रों में ढलकर हमेशा के लिए हमारे दिल और दिमाग खुद को बसा लेती है॥
वैसे मार्कर के आ जाने के बाद चाॅक भी अपने अस्तित्व को लेकर जूझ रही है और हो सकता है कि आने वाले आठ दस वर्षों में इसका भी वही हाल हो जो फाउंटेन पेन का हुआ है॥
भला कैसे भूल सकता हूं मैं अपने स्कूल की चाॅक की उस एकमात्र ब्रांड "प्रेम चाॅक" को जिसके डिब्बे से हम लोग रोज एक-दो चाॅक उडाते थे और उसके बाद उसका बेहतर उपयोग घर के दरवाजों और दीवारों पर किया करते थे•वैसे स्कूलों और कॉलेजों में चाॅक का व्यापक प्रयोग शिक्षकों का चरित्र चित्रण करने उनकी गुप्त जीवनी लिखने के साथ-साथ उन्हें एकान्त दीवारों पर अलग अलग उपनामों से अलंकृत करने जैसे कार्यों के लिए भी किया जाता रहा है॥
वो चाॅक ही थी जिससे मैंने स्वर व्यंजन को लिखना सीखा अंकों को पहचानना सीखा, ये उन रंग बिरंगी चाॅकों का ही कमाल था जिसने जीव विज्ञान की क्लास को भी इतना मजेदार बना दिया था॥
चाॅक का भी क्या फलसफा है हमारी इच्छा के अनुसार कभी शब्दों में तो कभी चित्रों में ढलकर हमेशा के लिए हमारे दिल और दिमाग खुद को बसा लेती है॥
वैसे मार्कर के आ जाने के बाद चाॅक भी अपने अस्तित्व को लेकर जूझ रही है और हो सकता है कि आने वाले आठ दस वर्षों में इसका भी वही हाल हो जो फाउंटेन पेन का हुआ है॥